मधुबाला - दिलीप कुमार

मधुबाला: दर्द का सफर

पुस्तक अंश

मधुबाला और निम्मी बचपन से ही दोस्त हो गयी थी लेकिन फिल्म अमर के सेट पर निम्मी और मधुबाला में गहरी दोस्ती हो गयी थी। महबूब खान के निर्देशन में बनी अमर (1954) अपने समय की आगे की फिल्म थी और संभवत इस कारण यह फिल्म काफी दर्शकों को पंसद नहीं आयी लेकिन इस फिल्म में दोनों अभिनेत्रियों के काम की सराहना हुयी। इस फिल्म में मधुबाला ने मीना कुमारी की जगह पर काम किया। मीना कुमारी ने इस फिल्म की 15 दिनों तक शूटिंग करने के बाद महबूब खान से मनमुटाव के कारण इस फिल्म को छोड़ दिया और मधुबाला तथा निम्मी को एक साथ काम करने का मौका मिला।



फिल्म अमर के सेट पर निम्मी और मधुबाला में गहरी दोस्ती हो गयी थी। वे अपने भोजन के साथ-साथ मेकअप रूम और अपने अनुभवों को भी शेयर करती थीं। दोनों इतनी गहरी दोस्त हो गयी कि दोनों के बीच दिलीप कुमार को लेकर भी चर्चाएं होने लगीं जो उस फिल्म में मुख्य अभिनेता की भूमिका निभा रहे थे। दिलीप कुमार को अपना दिल दे चुकी मधुबाला के दिमाग में निम्मी की बातों से थोड़ा संदेह उत्पन्न हुआ। मधुबाला के मन में यह स्वभाविक सवाल उठा, ‘‘निम्मी दिलीप का उतना ही ख्याल क्यों रखती है जितना मैं रखती हूं? यदि ऐसा है तो मुझे क्या करना चाहिए?’’ निम्मी ने बाद में एक साक्षात्कार में बताया, ‘‘एक दिन मधुबाला ने मुझे बुलाकर कहा, ‘‘निम्मी, क्या मैं तुमसे कुछ पूछ सकती हूं? मुझे विश्वास है कि तुम मुझसे झूठ नहीं बोलोगी और मुझसे कुछ नहीं छुपाओगी।’’ जब मैंने उन्हें आश्वस्त किया तो उन्होंने कहा कि अगर तुम दिलीप कुमार के बारे में वैसा ही महसूस करती हो जैसा मैं करती हूं तो मैं तुम्हारी खातिर उनकी जिंदगी से निकल जाउंगी और मैं उन्हें तुम्हारे लिये छोड़ दूंगी।’’जब निम्मी ने यह सुना तो उन्हें बेहद आश्चर्य हुआ और गहरा धक्का लगा। वह मधुबाला को यह कहकर छेड़ने लगी कि हालांकि वह उसकी (मधुबाला की) तरह खूबसूरत नहीं हैे लेकिन वह दान में पति नहीं चाहती है।’’



निम्मी ने बताया, ‘‘मैंने उसे सलाह दी कि वह वह अपने मूल्यवान विचार अपने पास ही रखे और आगे किसी को भी इस तरह का आॅफर न दे क्योंकि हो सकता है कि किसी को उनका विचार पसंद आ जाए और वह स्वीकार भी कर ले।........’’



निम्मी बताती है कि मधुबाला जितनी नेक थी, उतनी ही प्यारी भी थी। जब उनकी मृत्यु हुई तो मैं दिल से रोई।एक के बाद एक सभी चली गईं- गीता बाली, नरगिस, नूतन, मीना कुमारी। अब अब मधुबाला’’
साची प्रकाशन से शीघ्र प्रकाशित होने वाली पुस्तक ‘‘मधुबाला: दर्द का सफर’’ से सभार।

पद न जाये -

- विनोद विप्लव
पुराने समय में जब प्राणों का उतना महत्व नहीं था और जब पद नाम की अमूल्य धरोहर का अविर्भाव नहीं हुआ था, तब लोग अपने वचन की रक्षा के लिये फटाफट प्राण त्याग दिया करते थे। रामायण, महाभारत और अन्य प्राचीन ग्रंथों में ऐसे उदाहरणों की भरमार है। उस समय लोग फालतू-बेफालतू बातों पर प्राण देने के लिये उतावले रहते थे। सदियों बाद जब लोगों को कुछ अक्ल आयी और जब प्राण को मूल्यवाण समझा जाने लगा तो लोग प्राण के बदले पद त्यागने लगे। इतिहास का यह ऐसा भयावह दौर था जिसे सोच कर सिर फोड़ने का मन करने लगता है। ऐसे मूर्ख अधिकारियों, मंत्रियों और नेताओं की भरमार थी जो उस तत्परता एवं निर्ममता के साथ पद त्यागते थे जिस निर्ममता के साथ लोग चिथड़े-चिथड़े हो गये कपड़े को भी नहीं त्यागते। पलायनवाद का ऐसा शर्मनाक दौर था। जब प्राण मिली है तो प्राण का और जब पद मिला है तो पद का सम्मान करो। लेकिन इन पलायनवादियों को कौन समझाता। सभी एक से बढ़कर एक पलायनवादी थे।

लेकिन अब हमारा देश अंधकार के युग से निकल चुका है। अब लोगों ने प्राण और पद के महत्व को भली भांति समझ लिया है। लोगों को पता चल गया है कि प्राण और पद कितने मूल्यवाण है। जिस तरह से मानव प्राण पाने के सांप-बिच्छुओं आदि के रूप में असंख्य जन्म लेने पड़ते हैं उसी तरह से हजारों पापड़ बेलने, लोहे के सैकड़ों चने चबाने तथा लाख तरह के जुगाड़ और पुण्य-अपुण्य कार्य करने के बाद पद मिलता हैं। इसलिये इतने मुश्किल से मिले पद को त्यागना सरासर मूर्खता नहीं तो और क्या है। जब प्राण मिला है तो जी भर के जियो और पद मिला तो मनभर कर उसका उपभोग करो। यही आदर्श जीवन दर्शन है और खुशी की बात है कि आज लोगों ने इस दर्शन को अपना लिया है। पहले तो लोग ऐसे-ऐसे कारणों से पद त्याग देते थे जिसे सोचकर इनके दिमाग पर तरस आता है। किसी ड्राइवर या गार्ड की गलती से कोई ट्रेन कहीं भिड़ गयी या पटरी से उतर गयी तो रेल मंत्री ने पद त्याग दिया। किसी क्लर्क ने सौ-दो सौ रूपये का घूस खा लिया तो वित्त मंत्री ने इस्तीफा दे दिया। किसी राज्य में पुलिस के किसी जवान ने किसी को डंडा छूआ दिया तो मुख्यमंत्री ने पद छोड़ दिया। लेकिन अब हमारे देश का लोकतंत्र परिपक्व हो चुका है। हमारे नेता कर्तव्यों और भावनाओं के मायाजाल में नहीं फंसते। हालांकि आज भी कुछ ऐसे लोकतंत्र विरोधी लोग हैं जो महिलाओं को सरेआम नंगा किये जाने, उनका सामूहिक बलात्कार किये जाने और निर्दोश छात्र-छात्राओं को आंतकवादी बताकर उन्हें पुलिसिया मुठभेड़ में मार गिराये जाने जैसी छोटी-मोटी घटनाओं को लेकर मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों से इस्तीफे की मांग करते रहते हैं, लेकिन अब मंत्री-मुख्यमंत्री इतने कच्चे दिल के नहीं हैं कि वे ऐसी घटनाआंे पर इस्तीफा दे दें। ऐसी घटनायें तो रोज और हर कहीं होती हैं और अगर इन्हें लेकर इस्तीफा देने की पुरातन कुप्रथा फिर शुरू हो गयी तो फिर राज-काज कौन संभालेगा। फिर कैसे सरकार, संसद और विधानसभायें चलेंगी। ऐसे में तो लोकतंत्र का चारों खंभा ही ढह जायेगा और देश रसातल में चला जायेगा। यह तो गनीमत है कि हमारे नेताओं और मंत्रियों में सद्बुद्धि आ गयी है जिसके चलते देश और लोकतंत्र बचा हुआ है।

लाइलाज बीमारियों में कारगर है होलिस्टिक चिकित्सा

लाइलाज बीमारियों में कारगर है होलिस्टिक चिकित्सा
लाइलाज बीमारियों एवं दर्द से मुक्ति पाने के लिये मनुष्य सदियों से प्रयत्नरत है। प्राचीन समय में बीमारियों से छुटकारा पाने के लिये लोग वैद्य-हकीमों, जादूगरों, शोमैनों और पुजारियों की शरण लेते थे। आधुनिक समय में बीमारियों के इलाज के लिये हालांकि अनेक आधुनिक औषधियों, आधुनिक किस्म की सर्जरी और अनेक चिकित्सा विधियों का विकास हो चुका है लेकिन अक्सर देखा जाता है कि उपचार की ऐलोपैथी की औषधियों एवं आधुनिक चिकित्सा विधियों बीमारियां दूर होने के बजाय गंभीर होती जाती है और एक स्थिति ऐसी आती है जब दवाईयां और इंजेक्शन निष्प्रभावी हो जाते हैं। कई बार ये दवाईयां खुद मर्ज से कहीं अधिक परेशानी पैदा करती हैं। इन दवाईयों के दुष्प्रभाव के कारण नयी बीमारियां पैदा हो जाती हंै। आज तक ऐसी कोई दवाई नहीं बनी जो पूरी तरह से दुष्प्रभाव रहित हो। कई बार ऐलोपैथी रक्त स्राव अथवा दिमागी दौरे के कारण बन सकती हैं जिनसे रोगी की मौत तक हो सकती है। आज जब दर्दनिवारक दवाईयों के अंधाधुंध सेवन ने एक महामारी का रूप धारण कर लिया है वैसे में अनेक देशों में होलिस्टिक चिकित्सा को दर्द निवारण एवं प्रबंधन की कारगर एवं दुष्प्रभावरहित पद्धति के रूप में लोकप्रियता हासिल हो रही है।
नयी दिल्ली स्थित इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के होलिस्टिक विशेषज्ञ डा. रविन्द्र के. तुली का कहना है कि आधुनिक चिकित्सा तथा होलिस्टिक चिकित्सा जैसी विभिन्न वैकल्पिक चिकित्सा प्रणालियों की मदद से लाइलाज बीमारियों से पीड़ित मरीजों को किसी दवाई की मदद के बगैर स्थायी तौर पर राहत दिलायी जा सकती है। होलिस्टिक चिकित्सा कमर दर्द, गर्दन दर्द, आथ्र्राइटिस, ओस्टियो - आथ्र्राइटिस, गठिया, सियाटिका, कैंसर पीड़ा, सिर दर्द, माइग्रेन, इरीटेबल बाउल सिंड्रोम, साइनुसाइटिस, डिस्क समस्या, पेट दर्द, हर्पिज, न्यूरेल्जिया और डायबेटिक न्यूरोपैथी जैसे किसी भी तरह के दर्द का सफलतापूर्वक निवारण हो सकता है। इसके अलावा हाल के वर्षों में होलिस्टिक चिकित्सा एवं एक्युपंक्चर को कैंसर रोगियों को कष्टों से निजात दिलाने की एक महत्वपूर्ण तरकीब के रूप में माना जाने लगा है। मौजूदा समय में होलिस्टिक चिकित्सा एक सम्पूर्ण चिकित्सा पद्धति के रूप में विकसित हुआ है।
भारत में होलिस्टिक चिकित्सा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से स्थापित सोसायटी फाॅर होलिस्टिक एडवांसमेंट आॅफ मेडिसीन (सोहम) के संस्थापक डा. तुली बताते कि कोई भी दर्द लाइलाज नहीं होता है। दर्द शरीर के किसी भाग में उत्पन्न किसी न किसी व्याधि का संकेत होता है और इसलिये दर्द को स्थायी तौर पर जड़ से दूर करने के लिये उस व्याधि या दर्द के कारण को ठीक करना जरूरी है। होलिस्टिक चिकित्सा मरीज को दर्द से राहत दिलाने के साथ-साथ दर्द के कारण को दूर करती है।
डा. तुली का कहना है कि उन्होंने अपने 25 वर्ष के अनुभव से पाया है कि 90 प्रतिशत से अधिक मरीजों के लिये होलिस्टिक चिकित्सा कारगर है इसलिये किसी भी तरह के दर्द और रोग से ग्रस्त मरीज को जल्द से जल्द होलिस्टिक चिकित्सा की मदद लेनी चाहिये।
डा. तुली का कहना है कि होलिस्टिक चिकित्सा को प्रसव पीड़ा को नियंत्रित करने तथा सामान्य प्रसव सुनिश्चित कराने में काफी कारगर पाया गया है।
डा. तुली बताते हैं कि एक्युपंक्चर एवं होलिस्टिक चिकित्सा की अन्य विधियां दर्द से प्रभावित क्षेत्र की मांसपेशियों को रिलैक्स होने में मदद करती है तथा शरीर में प्राकृतिक दर्दनिवारक तत्व के उत्सर्जन को बढाती है। इसके अलावा यह प्रभावित भाग में रक्त प्रवाह को बढ़ाती तथा वहां की स्नायुओं की कार्यक्षमता में सुधार लाती है। इसके परिणाम स्वरूप होलिस्टिक चिकित्सा दर्द से तत्काल राहत दिलाने के साथ - साथ शरीर की हीलिंग रिस्पौन्स को स्पंदित करती है। कुछ समय तक एक्युपंक्चर एवं होलिस्टिक चिकित्सा नियमित रूप से लेते रहने पर दर्द धीरे - धीरे कम होता है और कुछ समय बाद दर्द इतना कम या नगण्य हो जाता है कि मरीज को सामान्य जीवन में कोई दिक्कत नहीं होती है। होलिस्टिक चिकित्सा के तहत मरीज को दर्द से राहत दिलाने के लिये एक्युपंक्चर के अलावा एक्युपे्रषर, योग एवं ध्यान, रेकी चिकित्सा आदि की भी मदद ली जाती है। एक्युपंक्चर के तहत बाल जैसी पतली सुइयों की मदद से षरीर के उन बिन्दुओं को स्पंदित किया जाता है जो शरीर में ची नामक ऊर्जा के प्रवाह को नियंत्रित करते हैं। यह प्रक्रिया कष्टदायक नहीं है।
डा. तुली के अनुसार होलिस्टिक चिकित्सा का मूल सिद्धांत यह है कि पूरे शरीर में एक खास शक्ति (प्राण) का सतत प्रवाह एवं निर्माण होता है। चीनी में इस शक्ति को ‘की’ कहा जाता है। इस शक्ति के तहत दो तरह की ऊर्जा निहित होती है। जब तक शरीर में जीवन शक्ति में समुचित संतुलन एवं समायोजन बना रहता है तब तक आदमी स्वस्थ रहता है। इसके संतुलन में गड़बड़ी होने की परिणति ही बीमारियों के रूप में होती है।

खबरिया पार्टी




- विनोद विप्लव


कुछ पार्टी सत्ता में रहती है और कुछ पार्टी खबरों में। दूसरे शब्दों में यूं कह सकते हैं कि कुछ पार्टी सत्ता में बने रहना जानती है और कुछ पार्टी खबरों में बने रहना जानती है जबकि कुछ पार्टी न सत्ता में बने रहना जानती है और न ही खबरों में। पहली वाली पार्टी का जन्म सत्ता में रहने के लिये ही हुआ है। किसी कारण से जब वह सत्ता में नहीं रहती है तो वह उसी तरह से तड़पने लगती है जैसे कि जल बिन मछली। दूसरी वाली पार्टी का जन्म खबरों में बने रहने के लिये हुआ है। सत्ता उसके लिये महत्वपूर्ण नहीं है। सत्ता से बाहर रहना उसके लिये कोई संकट नहीं है। उसे दिक्कत तब होती है जब वह खबरों से बाहर हो जाती है। वह अगर सत्ता में आ भी जाये लेकिन किसी कारण से खबरों से बाहर हो जाये तो उसे बेचैनी होने लगती है और खबरों में वापसी के लिये उसे अपनी सरकार गिराने में भी कोई गुरेज नहीं होता है। जब यह पार्टी सत्ता से बाहर हो और वैसे समय में अगर वह खबरों से भी बाहर हो जाये तो उसके लिये जीना मुहाल हो जाता है और ऐसे में खबरों में फिर से बने रहने के लिये पार्टी के नेताओं को पार्टी तोड़ने में भी कोई संकोच नहीं होता है। दरअसल सत्ता में रहते रहने के कारण पहली वाली पार्टी को सत्ता में बने रहने का और दूसरी वाली पार्टी को खबरों में बने रहने के कारण खबरों में रहने की महारत हासिल है। दूसरी वाली पार्टी सत्ता में हो या नहीं हो, खबरों में केवल वही होती है। इस पार्टी को खबरों में बने रहने की ऐसी विशेषज्ञता हासिल है कि कई बार लगता है कि भारत में अगर कोई पार्टी है तो केवल एकमात्र वही है। इस पार्टी के नेताओं को इस बात का पक्का विश्वास है कि यह पार्टी हमेशा खबरों में ही होगी, चाहे पार्टी रहे या न रहे। इसलिये पार्टी के नेताओं को पार्टी की ऐसी तैसी करने पर कोई मलाल नहीं होता क्योंकि उन्हें पता है कि पार्टी की जितनी भद्द पिटेगी, जितनी फजीहत होगी, पार्टी जितनी टूटेगी और पार्टी में जितनी गाली-गलौच होगी, पार्टी उतनी ही अधिक खबरों में रहेगी जो कि पार्टी और पार्टी नेताओं की मूल जरूरत, बल्कि उनके जीने का आधार है। इस पार्टी के नेताओं को यह भले ही पता नहीं हो कि पार्टी को सत्ता में कैसे लाया जा सकता है या सत्ता में कैसे बनाये रखा जा सकता है लेकिन उन्हें यह भली-भांति पता है कि पार्टी को खबरों में कैसे लाया जा सकता है और खबरों में कैसे बनाये रखा जा सकता है। पार्टी के नेताओं को यह पता होता है कि खबरों में बने रहने के लिये किस महापुरुष पर लिखना चाहिये और किस पर नहीं लिखना चाहिये, किस पर चिंतन करना चाहिये और किस पर मंथन करना चाहिये। कब बैठक और कब उठक-बैठक करनी चाहिये। कब किसके घर जाना चाहिये और कब किसके घर नहीं जाना चाहिये। कब किसको घर से निकालना चाहिये और कब किसके घर से निकलना चाहिये। हमारे देश में लिखने के लिये महापुरूषों की क्या कमी है कि लेकिन पार्टी नेताओं को पता है कि खबरों में रहने के लिये अपने देश के बजाय किसी दूसरे देश के महापुरूश्ष पर लिखना या बोलना चाहिये। हमेशा खबरों में रहने वाली इस पार्टी का देश और जनता के लिये जितना बड़ा योगदान है उतना किसी अन्य पार्टी बल्कि हमेशा सत्ता में रहने वाली पार्टी का भी नहीं है। जनता इसी पार्टी के कारण ही समय-समय पर विभिन्न विषयों के बारे में जागरुक होती रहती है। इस पार्टी का ही कमाल है कि देश के लोगों को पड़ोसी देश के महापुरुषों के बारे में भी इतनी जानकारी हो गयी है कि जितनी जानकारी उन्हें अपने देश के महापुरुषों के बारे में नहीं है। जिन लोगों अपने देश के संस्थापकों के बारे में पता नहीं उन्हें पडोसी देश के संस्थापक के बारे में इतना पता हो गया है जितना पडोसी देश के लोगों को भी पता नहीं है। इसी पार्टी की बदौलत लोगों को कंधार विमान अपहरण और स्विस बैंक से लेकर लोक लेखा समिति (पीएसी) जैसे गंभीर विषयों की जानकारी होने लगी है। आप सोचिये कि अगर यह पार्टी नहीं होती तो न जाने कितने चैनल और न जाने कितने अखबार बंद हो गये होते। न जाने कितने पत्रकार बेरोजगार हो गये होते और न जाने कितने पत्रकारों को अपनी नौकरी बचाने के लिये भुतहा हवेलियों, श्मशान घाटों, कब्रिस्तानों, गड्ढों, और नाग-नागिनों के बिलों में चक्कर लगाने पड़ते।